“Poetry is not a turning loose of emotion, but an escape from emotion; it is not the expression of personality but an escape from personality. But, of course, only those who have personality and emotion know what it means to want to escape from these” - a wonderful quote from Emily Dickenson.
I chanced upon few stray pages of a diary that I used to keep as a young adolescent. I had written a couple of poems in Hindi.
Here goes:
महफ़िल थी सजी आज यहाँ
फिर किसे ढूंढ रही थी नज़रें?
मैंने कहा, सब कुछ तो है यहाँ,
तन्हाई ने आवाज़ दी - वो यहाँ नहीं ...
जिसकी खुशबु बस्ती है दूर पहाड़ों में
और उतरती है वो घटाओं संग,
बरसती है मन के इस वीरान नगरी पर
बनके पहली फुहार की सौंधी खुशबु|
बस जाता है हर वीराना
उठती है एक चंचल सी लहर,
आग के लपते बन जाते हैं शीतल ओस
मालूम होता है अमृत सा हर ज़हर|
आज तुने कही वो बात जो कचोट रहा है मन,
मीरा ने तो हस के विष पिया, मैं कहाँ की जोगन?
दर-बदर फिरती हूँ तलाश में,
कहीं तो मिले एक कतरा ज़िन्दगी - इसी आस में
आस जो तोड़ी है तुने, वो कैसे जोड़ पाऊंगी?
पर चीज़ वो तेरी है, उसे जीवन भर अपनाऊंगी|
~Soumya
(December 2004)
No comments:
Post a Comment