Wednesday, 13 April 2011

The Music of Mere Words




I chanced upon few stray pages of a diary that I used to keep as a young adolescent. I had written a couple of poems in Hindi.

Here goes: 

महफ़िल थी सजी आज यहाँ
फिर किसे ढूंढ रही थी नज़रें?
मैंने कहा, सब कुछ तो है यहाँ,
तन्हाई ने आवाज़ दी - वो यहाँ नहीं ...

जिसकी खुशबु बस्ती है दूर पहाड़ों में
और उतरती है वो घटाओं संग,
बरसती है मन के इस वीरान नगरी पर
बनके पहली फुहार की सौंधी खुशबु|

बस जाता है हर वीराना
उठती है एक चंचल सी लहर,
आग के लपते बन जाते हैं शीतल ओस
मालूम होता है अमृत सा हर ज़हर|

आज तुने कही वो बात जो कचोट रहा है मन,
मीरा ने तो हस के विष पिया, मैं कहाँ की जोगन?
दर-बदर फिरती हूँ तलाश में,
कहीं तो मिले एक कतरा ज़िन्दगी - इसी आस में

आस जो तोड़ी है तुने, वो कैसे जोड़ पाऊंगी?
पर चीज़ वो तेरी है, उसे जीवन भर अपनाऊंगी|

~Soumya
(December 2004)

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